"भ्रष्टाचाररूपी दानव"
भ्रष्टाचार ... भ्रष्टाचार ... भ्रष्टाचार की गूंज "इंद्रदेव" के कानों में समय-बेसमय गूंज रही थी, इस गूंज ने इंद्रदेव को परेशान कर रखा था वो चिंतित थे कि प्रथ्वीलोक पर ये "भ्रष्टाचार" नाम की कौन सी समस्या आ गयी है जिससे लोग इतने परेशान,व्याकुल व भयभीत हो गये हैं, न तो कोई चैन से सो रहा है और न ही कोई चैन से जाग रहा है ... बिलकुल त्राहीमाम-त्राहीमाम की स्थिति है ... नारायण - नारायण कहते हुए "नारद जी" प्रगट हो गये ... "इंद्रदेव" की चिंता का कारण जानने के बाद "नारद जी" बोले मैं प्रथ्वीलोक पर जाकर इस "भ्रष्टाचाररूपी दानव" की जानकारी लेकर आता हूं।
... नारदजी भेष बदलकर प्रथ्वीलोक पर ... सबसे पहले भ्रष्टतम भ्रष्ट बाबू के पास ... बाबू बोला "बाबा जी" हम क्या करें हमारी मजबूरी है, साहब के घर दाल,चावल,सब्जी,कपडे-लत्ते सब कुछ पहुंचाना पडता है और-तो-और कामवाली बाई का महिना का पैसा भी हम ही देते हैं, साहब-मेमसाब का खर्च, कोई मेहमान आ गया उसका भी खर्च ... अब अगर हम इमानदारी से काम करने लगें तो कितने दिन काम चलेगा ... हम नहीं करेंगे तो कोई दूसरा करने लगेगा फ़िर हमारे बाल-बच्चे भूखे मर जायेंगे।
... फ़िर नारदजी पहुंचे "साहब" के पास ... साहब गिडगिडाने लगा अब क्या बताऊं "बाबा जी" नौकरी लग ही नहीं रही थी ... परीक्षा पास ही नहीं कर पाता था "रिश्वत" दिया तब नौकरी लगी .... चापलूसी की सीमा पार की, तब जाके यहां "पोस्टिंग" हो पाई है अब बिना पैसे लिये काम कैसे कर सकता हूं, हर महिने "बडे साहब" और "मंत्री जी" को भी तो पैसे पहुंचाने पडते हैं ... अगर ईमानदारी दिखाऊंगा तो बर्बाद हो जाऊंगा "भीख मांग-मांग कर गुजारा करने के अलावा कोई विकल्प नहीं रहेगा"।
... अब नारदजी के सामने "बडे साहब" ... बडे साहब ने "बाबा जी" के सामने स्वागत में काजू, किश्मिस, बादाम, मिठाई और जूस रखते हुये अपना दुखडा सुनाना शुरु किया, अब क्या कहूं "बाबा जी" आप से तो कोई बात छिपी नहीं है, आप तो अंतरयामी हो .... मेरे पास सुबह से शाम तक नेताओं, जनप्रतिनिधियों, पत्रकारों, अफ़सरों, बगैरह-बगैरह का आना-जाना लगा रहता है हर किसी का कोई-न-कोई दुखडा रहता है उसका समाधान करना ... और उनके स्वागत-सतकार में भी हजारों-लाखों रुपये खर्च हो ही जाते हैं ... ऊपर बालों और नीचे बालों सबको कुछ-न-कुछ देना ही पडता है, कोई नगद ले लेता है तो कोई स्वागत-सतकार करवा लेता है .... अगर इतना नहीं करूंगा तो "मंत्री जी" नाराज हो जायेंगे अगर "मंत्री जी" नाराज हुये तो मुझे इस "मलाईदार कुर्सी" से हाथ धोना पड सकता है ।
.... अब नारदजी सीधे "मंत्री जी" के समक्ष ... मंत्री जी सीधे "बाबा जी" के चरणों में ... स्वागत-पे-स्वागत ... फ़िर धीरे से बोलना शुरु ... अब क्या कहूं "बाबा जी" मंत्री बना हूं करोडों-अरबों रुपये इकट्ठा नहीं करूंगा तो लोग क्या कहेंगे ... बच्चों को विदेश मे पढाना, विदेश घूमना-फ़िरना, विदेश मे आलीशान कोठी खरीदना, विदेशी बैंकों मे रुपये जमा करना और विदेश मे ही कोई कारोबार शुरु करना ये सब "शान" की बात हो गई है ..... फ़िर मंत्री बनने के पहले न जाने कितने पापड बेले हैं, आगे बढने की होड में मुख्यमंत्री जी के "जूते" भी उठाये हैं ... समय-समय पर "मुख्यमंत्री जी" को "रुपयों से भरा सूटकेश" भी देना पडता है अब भला ईमानदारी का चलन है ही कहां !... अब नारदजी के समक्ष "मुख्यमंत्री जी" ... अब क्या बताऊं "बाबा जी" मुझे तो नींद भी नहीं आती, रोज "लाखों-करोडों" रुपये आ जाते हैं ... कहां रखूं ... परेशान हो गया हूं ... बाबा जी बोले - पुत्र तू प्रदेश का मुखिया है भ्रष्टाचार रोक सकता है ... भ्रष्टाचार बंद हो जायेगा तो तुझे नींद भी आने लगेगी ... मुख्यमंत्री जी "बाबा जी" के चरणों में गिर पडे और बोले - ये मेरे बस का काम नहीं है बाबा जी ... मैं तो गला फ़ाड-फ़ाड के चिल्लाता हूं पर मेरे प्रदेश की भोली-भाली "जनता" सुनती ही नहीं है ... "जनता" अगर रिश्वत देना बंद कर दे तो भ्रष्टाचार अपने आप बंद हो जायेगा .... पर मैं तो बोल-बोल कर थक गया हूं।
... अब नारद जी का माथा "ठनक" गया ... सारे लोग भ्रष्टाचार में लिप्त हैं और प्रदेश का सबसे बडा भ्रष्टाचारी "खुद मुख्यमंत्री" अपने प्रदेश की "जनता" को ही भ्रष्टाचार के लिये दोषी ठहरा रहा है .... अब भला ये गरीब, मजदूर, किसान दो वक्त की "रोटी" के लिये जी-तोड मेहनत करते हैं ये भला भ्रष्टाचार के लिये दोषी कैसे हो सकते हैं !!
.... चलते-चलते नारद जी "जनता" से भी रुबरु हुये ..... गरीब, मजदूर, किसान रोते-रोते "बाबा जी" से बोलने लगे ... किसी भी दफ़्तर में जाते हैं कोई हमारा काम ही नहीं करता ... कोई सुनता ही नहीं है ... चक्कर लगाते-लगाते थक जाते हैं .... फ़िर अंत में जिसकी जैसी मांग होती है उस मांग के अनुरुप "बर्तन-भाडे" बेचकर, या किसी सेठ-साहूकार से "कर्जा" लेकर रुपये इकट्ठा कर के दे देते हैं तो काम हो जाता है .... अब इससे ज्यादा क्या कहें "मरता क्या न करता" ... ... नारद जी भी "इंद्रलोक" की ओर रवाना हुये ... मन में सोचते-सोचते कि बहुत भयानक है ये "भ्रष्टाचाररूपी दानव" ... !!!
... नारदजी भेष बदलकर प्रथ्वीलोक पर ... सबसे पहले भ्रष्टतम भ्रष्ट बाबू के पास ... बाबू बोला "बाबा जी" हम क्या करें हमारी मजबूरी है, साहब के घर दाल,चावल,सब्जी,कपडे-लत्ते सब कुछ पहुंचाना पडता है और-तो-और कामवाली बाई का महिना का पैसा भी हम ही देते हैं, साहब-मेमसाब का खर्च, कोई मेहमान आ गया उसका भी खर्च ... अब अगर हम इमानदारी से काम करने लगें तो कितने दिन काम चलेगा ... हम नहीं करेंगे तो कोई दूसरा करने लगेगा फ़िर हमारे बाल-बच्चे भूखे मर जायेंगे।
... फ़िर नारदजी पहुंचे "साहब" के पास ... साहब गिडगिडाने लगा अब क्या बताऊं "बाबा जी" नौकरी लग ही नहीं रही थी ... परीक्षा पास ही नहीं कर पाता था "रिश्वत" दिया तब नौकरी लगी .... चापलूसी की सीमा पार की, तब जाके यहां "पोस्टिंग" हो पाई है अब बिना पैसे लिये काम कैसे कर सकता हूं, हर महिने "बडे साहब" और "मंत्री जी" को भी तो पैसे पहुंचाने पडते हैं ... अगर ईमानदारी दिखाऊंगा तो बर्बाद हो जाऊंगा "भीख मांग-मांग कर गुजारा करने के अलावा कोई विकल्प नहीं रहेगा"।
... अब नारदजी के सामने "बडे साहब" ... बडे साहब ने "बाबा जी" के सामने स्वागत में काजू, किश्मिस, बादाम, मिठाई और जूस रखते हुये अपना दुखडा सुनाना शुरु किया, अब क्या कहूं "बाबा जी" आप से तो कोई बात छिपी नहीं है, आप तो अंतरयामी हो .... मेरे पास सुबह से शाम तक नेताओं, जनप्रतिनिधियों, पत्रकारों, अफ़सरों, बगैरह-बगैरह का आना-जाना लगा रहता है हर किसी का कोई-न-कोई दुखडा रहता है उसका समाधान करना ... और उनके स्वागत-सतकार में भी हजारों-लाखों रुपये खर्च हो ही जाते हैं ... ऊपर बालों और नीचे बालों सबको कुछ-न-कुछ देना ही पडता है, कोई नगद ले लेता है तो कोई स्वागत-सतकार करवा लेता है .... अगर इतना नहीं करूंगा तो "मंत्री जी" नाराज हो जायेंगे अगर "मंत्री जी" नाराज हुये तो मुझे इस "मलाईदार कुर्सी" से हाथ धोना पड सकता है ।
.... अब नारदजी सीधे "मंत्री जी" के समक्ष ... मंत्री जी सीधे "बाबा जी" के चरणों में ... स्वागत-पे-स्वागत ... फ़िर धीरे से बोलना शुरु ... अब क्या कहूं "बाबा जी" मंत्री बना हूं करोडों-अरबों रुपये इकट्ठा नहीं करूंगा तो लोग क्या कहेंगे ... बच्चों को विदेश मे पढाना, विदेश घूमना-फ़िरना, विदेश मे आलीशान कोठी खरीदना, विदेशी बैंकों मे रुपये जमा करना और विदेश मे ही कोई कारोबार शुरु करना ये सब "शान" की बात हो गई है ..... फ़िर मंत्री बनने के पहले न जाने कितने पापड बेले हैं, आगे बढने की होड में मुख्यमंत्री जी के "जूते" भी उठाये हैं ... समय-समय पर "मुख्यमंत्री जी" को "रुपयों से भरा सूटकेश" भी देना पडता है अब भला ईमानदारी का चलन है ही कहां !... अब नारदजी के समक्ष "मुख्यमंत्री जी" ... अब क्या बताऊं "बाबा जी" मुझे तो नींद भी नहीं आती, रोज "लाखों-करोडों" रुपये आ जाते हैं ... कहां रखूं ... परेशान हो गया हूं ... बाबा जी बोले - पुत्र तू प्रदेश का मुखिया है भ्रष्टाचार रोक सकता है ... भ्रष्टाचार बंद हो जायेगा तो तुझे नींद भी आने लगेगी ... मुख्यमंत्री जी "बाबा जी" के चरणों में गिर पडे और बोले - ये मेरे बस का काम नहीं है बाबा जी ... मैं तो गला फ़ाड-फ़ाड के चिल्लाता हूं पर मेरे प्रदेश की भोली-भाली "जनता" सुनती ही नहीं है ... "जनता" अगर रिश्वत देना बंद कर दे तो भ्रष्टाचार अपने आप बंद हो जायेगा .... पर मैं तो बोल-बोल कर थक गया हूं।
... अब नारद जी का माथा "ठनक" गया ... सारे लोग भ्रष्टाचार में लिप्त हैं और प्रदेश का सबसे बडा भ्रष्टाचारी "खुद मुख्यमंत्री" अपने प्रदेश की "जनता" को ही भ्रष्टाचार के लिये दोषी ठहरा रहा है .... अब भला ये गरीब, मजदूर, किसान दो वक्त की "रोटी" के लिये जी-तोड मेहनत करते हैं ये भला भ्रष्टाचार के लिये दोषी कैसे हो सकते हैं !!
.... चलते-चलते नारद जी "जनता" से भी रुबरु हुये ..... गरीब, मजदूर, किसान रोते-रोते "बाबा जी" से बोलने लगे ... किसी भी दफ़्तर में जाते हैं कोई हमारा काम ही नहीं करता ... कोई सुनता ही नहीं है ... चक्कर लगाते-लगाते थक जाते हैं .... फ़िर अंत में जिसकी जैसी मांग होती है उस मांग के अनुरुप "बर्तन-भाडे" बेचकर, या किसी सेठ-साहूकार से "कर्जा" लेकर रुपये इकट्ठा कर के दे देते हैं तो काम हो जाता है .... अब इससे ज्यादा क्या कहें "मरता क्या न करता" ... ... नारद जी भी "इंद्रलोक" की ओर रवाना हुये ... मन में सोचते-सोचते कि बहुत भयानक है ये "भ्रष्टाचाररूपी दानव" ... !!!
अजी सुनते हो,
अजी सुनते हो,
कब से चिल्लाए जा रही हूँ।
ठहरिए, बेलन लेके आ रही हूँ।
मैं बोला ये क्या करती हो,
हरदम गुस्से में रहती हो।
ना इतनी जोर से चिल्लाओ,
इशारों में ही कह जाओ।
वो बेलन छोड़ के मुस्काई,
कुछ देर ठहर के फरमाई।
अब झटपट बाहर जाइए,'कुछ' खाने को ले आइए।
मैं इसी ताक में था शायद कह दे वो बाहर जाने को,
पहली बार कही हैं मैडम बाहर से भोजन लाने को।
थी भीड़ बहुत ही सड़कों पे, लग रहा जोर जोर से नारा।
मैं समझ गया बड़का जीता, छोटका नेता फिर से हारा।
मैंने नजर दौड़ाया, सोचा कोई ऐसा दुकान हो,
जहाँ ग्राहक के लिए विक्रेता परेशान हो।
मैंने देखा कोई हाथ हिला रहाहै,
मिठाई की दुकान पे हमें बुलारहा है।
क्या समाचार है फलाना भाई,
आप कवि थे, कैसे बने हलुवाई।
बोले, हाल समाचार के लिए सारी जिंदगी खड़ी है,
पहले कविता सुनले बहुत देर से पड़ी है।
बिना ब्रेक के कुछ ही घंटों में एक छोटी सी कविता सुनाई,
फिर दोनों आँखे उनकी वाह-वाह को ललचाई।
वाह-वाह क्या बात है भईया मेरी भी छूट्टी कर दो,
झोला लेकर आया हूँ, मिठाईयाँऔर समोसे भर दो।
चुकता करके दाम जो वापस अपनेघर को आए,
बीबी बोली क्या लाना था और क्या लेकर आए।
आप रहते हैं बाहर हजारों में,
बताइए, 'ओल' को क्या कहते हैं इशारों में।
अटेंशन – एक व्यंग्य कथा !!
कुछ दिन पहले तक मेरी हालत बहुत खराब थी . मुझे कहीं से कोई भी अटेंशन नहीं मिल रही थी . हर कोई मुझे बस टेंशन देकर चला जाता था , जैसे मैं रास्ते का भिखारी हूँ और मुझे कोई भी भीख में टेंशन दे देता था. मैं बहुत दुखी था . कोई रास्ता नहीं सुझायी देता था. मुझे कहीं से कोई भी अटेंशन मिलने के असार नज़र नहीं आ रहे थे .मैंने बहुत कोशिश की , इधर से उधर , किसी तरह से मुझे अटेंशन मिले , लेकिन मुझे कोई फायदा नहीं हुआ. उल्टा टेंशन बढ गयी . ऊपर से बीबी –बच्चे और आस पड़ोस के लोग और ताना मारते थे, कि इतनी उम्र हो गयी , मुझे कोई जानता ही नहीं था . रोज अखबार और टीवी ,रेडियो में दूसरों के नाम और उनके किये गए अच्छे –बुरे काम देख-पढ़-सुन कर दिल जल जाता था . मुझे लगने लगा था कि मेरा जन्म बेकार हो गया है .
थक –हार कर मैंने अपने सबसे अच्छे दोस्त को फोन लगाया और उससे अपना दुखडा रोया . उसने मुझे बहुत समझाने की कोशिश की ,कि अटेंशन पाने के चक्कर में मेरी टेंशन बढ जायेंगी . उसने कहा कि , अटेंशन सिर्फ बुरे कामो में ज्यादा मिलती है , अच्छे कामो में कम मिलती है . अब इतने बरसो से मैं अच्छा बनकर रहा हूँ , लेकिन मुझे तो कोई अटेंशन नहीं मिली , सो सोच लिया कि बुरा बनकर ही अटेंशन लूँगा .उसने बहुत समझाया ;लेकिन मैंने एक न सुनी , मैंने उससे कह दिया कि अगर वो मुझे कोई उपाय न बताये तो वो मेरा दोस्त नहीं .
अब बरसो की दोस्ती दांव पर थी , उसने मुझसे पुछा कि अगर मैं ऑफिस में कोई पैसो की गडबड करूँ तो मेरा नाम पुलिस के पास जायेंगा और इस तरह से मुझे अटेंशन भी मिलेंगी . मैं थोडा सा हिचखिचाया , मैंने कहा यार इतने बरसो में जो नहीं हुआ , वो काम करके , बुढापे में क्यों अपना नाम खराब करू. .फिर उसने कहा कि मैं अपने बॉस को छुरा भोंक दूं , शायद इससे मुझे प्रसद्धि मिल जाए . मुझे उसका ये उपाय पसंद तो बहुत आया , क्योंकि मैं अपने बॉस को सख्त नापसंद करता था. लेकिन छुरा मारने के नाम से दिल धडक गया , क्योंकि आज तक मैंने कोई मार –पीठ नहीं की थी . मैंने उससे कहा कि मैं उसके खाने में जहर मिला देता हूँ ..दोस्त ने पुछा लेकिन इससे तेरी तरफ कोई अटेंशन नहीं आयेंगा . किसी को जब पता ही नहीं चलेंगा कि तुने ये किया है तो तेरी तरफ किसी की अटेंशन नहीं आएँगी . उसकी बात में दम था . फिर उसने कहा कि उसके चेहरे पर स्याही फ़ेंक दे . जब वो किसी मीटिंग में होंगा , तब तुझे अटेंशन मिल जायेंगी . उसका ये आईडिया मुझे अच्छा लगा.
दूसरे दिन , जब ऑफिस की बोर्ड मीटिंग थी , तब मैंने भरी मीटिंग में अपने बॉस पर चिल्लाया और उससे कहा कि उसने मेरी जिंदगी खराब कर दी है , और ये कहकर गुस्से से अपने पेन की स्याही उसके ऊपर फ़ेंक दी . वो सावधान था , वो झुक गया , और मेरी द्वारा फेंकी गयी स्याही हमारे कंपनी के मालिक पर गिरी . मेरे कंपनी के मालिक ने दुनिया देखी थी , उसने मेरा गुस्सा सहन कर लिया और समझदारी से काम लिया , उसने मेरे बॉस की और मेरी तनख्वाह २५% कम कर दिया और कहा कि अगली बार ,इस तरह की घटना होने पर ,हम दोनों को नौकरी से हटा देंगा . इस घटना से मुझे कोई अटेंशन नहीं मिली .लेकिन घर आने पर पत्नी ने मेरी तनख्वाह कम होने वाली बात पर ऐसा रौद्र रूप दिखाया कि मेरे तिरपन कांप गए.
मैंने फिर अपने दोस्त को फोन किया , कहा कि मुझे कोई ज्यादा अटेंशन नहीं मिली है और अब लोग इस घटना को भूल भी चुके है . मैं कुछ धमाकेदार कार्य करना चाहता हूँ . कुछ रास्ता बताये. मेरे दुनियादार दोस्त ने कुछ देर सोचा और कहा कि यार तू मोहल्ले की कोई औरत को छेड दे, पुलिस आकर तुझे ले जायेंगी और तुझे इस दुष्ट काम के लिये हर कोई कोसेंगा और तेरी बड़ी बदनामी होंगी . इस काम से तो तुझे १००% अटेंशन मिल जायेंगी . बात में तो दम था, कॉलेज के जमाने में अक्सर ऐसा करने से मोहल्ले में बाते होती थी ..सो मैं उसकी बात मान गया .
मैं शाम को मोहल्ले के नल पर जाकर पानी भरने के लिये बाल्टी हाथ में ली . मेरी पत्नी ने कहा कि , मेरी तबियत तो ठीक है न ? जिस आदमी ने जिंदगी में काम नहीं किया वो अब पानी भरने जा रहा है . मैं कहा कोई खास नहीं , बस यूँ ही तुम्हारी मदद करना चाह रहा हूँ . मोहल्ले में एक ही नल था और शाम को वहां बड़ी भीड़ रहती थी, बहुत सी औरत जिन्हें मैं भाभी कहता था [ और होली के दिन रंग डाल कर छेड़ता था ] वहां पानी भरने आती थी, वो सब वहां पर थी और मुझे देख कर आश्चर्य से हँसने लगी , सबने पूछा कि , आज होली नहीं है , फिर आज पानी भरने यहाँ कैसे. मैंने मुस्कराकर कहा , मैं तो आज ही होली खेलने के बहाने तुम सबको छेड़ने आया हुआ हूँ, ये कह कर मैं जल्दी से अपने पड़ोस की भाभी पर पानी डाल दिया . उसे बहुत गुस्सा आया , वो कुछ कहने ही वाली थी , कि पड़ोस की दूसरी भाभी ने उसके कान में कुछ कहा , बस फिर क्या था, थोड़ी ही देर में मैं और दूसरी औरते मिलकर नल पर पानी की होली खेलने लगे. मैं बड़ी कोशिश कर रहा था कि मैं औरतो को छेड कर भाग जाऊ. लेकिन ऐसा नहीं हुआ , खूब हो हल्ला होने के बाद , वहाँ की औरतो ने मुझे लाकर मेरी धर्मपत्नी को सौंप दिया और कहा कि मैं वह आकार सारी औरतो को पानी डाल डाल कर छेड रहा था. इतना कहकर वो सब तो चली गयी , लेकिन मेरा क्या हाल हुआ होंगा , उसे मैं शब्दों में बयान नहीं कर सकता .. हाय , उस बात की याद आते ही तन – मन कांपने लगता है .
कुछ दिन बाद मैंने फिर अपने दोस्त को फोन किया , उससे कुछ नया रास्ता बताने को कहा, उसने कहा कि सुन तू किसी शराब के दूकान में जाकर हल्ला कर दे. पुलिस आकर तुझे ले जायेगी .आयडिया अच्छा था. फिर उसने कहा कि शराबी के दो ही ठिकाने , एक तो ठेका और दूसरा थाने !! , मैं मान गया , संध्या समय घर से निकल पडा और मोहल्ले के एकमात्र शराब के ठेके पर पहुँच गया . वहां जाकर शराब पी और नशे में मैंने वहां पर मौजूद दूसरे ग्राहकों और शराबियों से लड़ना शुरू किया , ये देखकर ठेके के मालिक ने मुझे झापड मारा और मैं बेहोश हो गया , उसने मुझे घर लाकर छोड़ा और मेरी प्यारी सी धर्मपत्नी को सारी बात सुनाई . कुछ देर बाद मुझे होश आया , देखा तो सामने यमराज मेरी पत्नी के रूप में बैठा था . उसकी बाद की कथा मत पूछिए .
अब मैं बहुत दुखी हो चूका था. कोई भी मुझे किसी भी प्रकार की अटेंशन नहीं दे रहा था . बल्कि जिंदगी में बहुत से टेंशन पैदा होते जा रहे थे. बहुत दुखी होकर मैंने फिर अपने दोस्त को फोन लगाया . उसे कहा कि ये मेरा आखरी फोन है उसे , अगर वो कुछ न कर पाया मेरे लिये तो मैं आत्महत्या कर लूँगा . मेरी ये बात सुनकर दोस्त ने घबरा कर कहा कि , मैं तुझे आखरी रामबाण उपाय बता रहा हूँ , इसकी सफलता की पूरी गारंटी है . उसने फुसफुसाकर मुझे एक घांसू उपाय बताया , उपाय सुनते ही मैं कह उठा “what an idea sir जी !!!” अब रास्ता साफ़ था , मुझे अटेंशन मिलने ही वाली थी .
दूसरे दिन , शहर में उस राजनीतिक पार्टी की महासभा हुई और एक महान भ्रष्ट नेता भी आया . और एक अच्छा आदमी होने के नाते मुझे भी बुलाया गया . उस नेता का भाषण चल ही रहा था कि , मैं उठकर सामने गया और अपना जूता उसे दे मारा . बस फिर क्या था , हंगामा खड़ा हो गया , पुलिस ने मुझे पकड़ लिया , लेकिन फिर अचानक मेरी देखादेखी करीब ५ बंदे और खड़े हो गए और उन्होंने भी अपने जूते उस नेता की तरफ उछाल दिए .चारों तरफ जोरदार हंगामा शुरू हो गया , पुलिस ने हम सबको थाने लेकर गयी . और हमें हवालात में ठूंस दिया गया . शहर में बहुत धूम हो गयी थी , लोग सडको पर आ गए थे . टीवी , रेडियो और प्रेस में मेरी चर्चा हो रही थी . कुछ समय बाद , हमें एक वार्निग देकर छोड़ दिया गया . लोगो ने हमारी रिहायी पर उत्सव मनाया. मेरे गले में फूलो की माला थी और मुझे गाजे बाजे के साथ घर लाकर छोड़ा गया .
मुझे लगने लगा कि अब मुझे अटेंशन मिल रही है . मुझे मेरी अटेंशन एक पाव-किलो नज़र आ रही थी . घर पर मेरी बीबी ने मुझे मुस्कराकर देखा और कहा , तुम तो बड़े बहादुर निकले जी , और मुझे एक झप्पी दी , मुझे अब अटेंशन आधा किलो लगने लगी . थोड़ी देर बाद बेटे ने आकर पाँव छुए और कहा , Dad, I am proud of you . मुझे अब अटेंशन एक किलो नज़र आने लगी , मुझे बड़ी खुशी हो रही थी . पास पड़ोस के लोग आये और कहने लगे , कि मैं उनके मोहल्ले में हूँ , इस बात पर उन्हें गर्व है . मेरी अटेंशन अब ५ किलो हो गयी थी . शहर के लोग मेरा आदर सत्कार कर रहे थे, हर कोई मुझे अपने सभा और कार्यक्रम का अध्यक्ष बना रहा था . मेरा अटेंशन अब १० किलो हो गया था . हर अखबार , टीवी, रेडियो में मेरे ही चर्चे थे, पान ठेले से लेकर सब्जी मार्केट तक और सिनेमा हाल से लेकर लोकसभा तक , हर जगह बस मैं ही छाया हुआ था , अब मेरा अटेंशन ५० किलो का हो गया था . मैं बड़ा खुश था .
मेरे बॉस ने मुझे तरक्की दे दी थी , मेरे सहकर्मी रोज मुझे अपना डब्बा खिलाने लगे , ऑफिस की कुछ औरते मुझे देखकर मुस्कराने लगी ,यार लोग मेरे साथ अब घूमने आने के लिये तडपते थे. मेरी अटेंशन अब १०० किलो से ज्यादा हो गयी थी , मुझे परम खुशी हो रही थी . चारों तरफ मेरा नाम था , टीवी, रेडियो और अखबार मेरे नाम के बिना सांस नहीं ले पाते थे.
फिर अभी कल की ही बात है , जिस राजनैतिक पार्टी के नेता को मैंने जूता मारा था , उसी पार्टी ने मुझे अब मेरे शहर का उम्मीदवार बनाया है और मुझे चुनाव का टिकिट दिया है . अब मेरे चारों तरफ अटेंशन ही अटेंशन है , कहीं कोई टेंशन नहीं है . बस खुशी ही खुशी है . इतना अटेंशन तो मैंने कभी सोचा भी नहीं था . मैं अब अटेंशन के नीचे दब दब जाता था. मैंने अपने दोस्त को फोन करके कहा , यार तेरी युक्ति तो काम कर गयी , अब चारों तरफ अटेंशन ही अटेंशन है . . वो हँसने लगा .
अब कोई टेंशन नही है . आह जिंदगी कितनी खूबसूरत है ...वाह मज़ा आ गया !!!! हर तरफ सिर्फ मेरे लिये ही अटेंशन है .
अटेंशन जिंदाबाद !!! राजनीति जिंदाबाद !! जनता जिंदाबाद !! अटेंशन जिंदाबाद !!