इन दिनों स्लट-वॉक की बडी चर्चा हो रही है. दर असल स्लट-वॉक पश्चिमी सभ्यता का एक नंगा नाच है जिसे हिन्दुस्तान में आयातित किया जा रहा है. यह 3 अप्रेल 2011 को कनाडा से चालू हुआ था जहां प्रथम स्लट-वॉक में काफी सारी जवान स्त्रियों ने एक दम अर्धनग्न वस्त्रों में स्त्रियों के यौनिक शोषण का विरोध किया था.
धन की जरूरत पडने पर कई पश्चिमी देशों में स्त्रियां अपन कौमार्य नीलाम करके बेचती हैं. ऎसे समाज में यदि वे अर्धनग्न भीड के रूप में सडक पर उतर आयें तो इसमें कोई ताज्जुब नहीं है. लेकिन हिन्दुस्तान जैसे धार्मिक एवं मर्यादा-नियंत्रित देश में इस तरह के प्रदर्शन एकदम गलत है. स्त्री-स्वंतंत्रता का मतलब लैंगिक अराजकता नहीं है.
स्लट का चालू अनुवाद है छिनाल या रांड किस्म की औरत. अत: स्लट-वॉक का अनुवाद होगा छिनाल प्रदर्शन या रांड-परेड. सवाल है कि हिन्दुस्तान में इस प्रकार के अनैतिक परेड की जरूरत है क्या. मेरे हिसाब से अश्लील प्रदर्शन के कानून का प्रयोग कर इस तरह की लैंगिक अराजकता को रोकना जरूरी है.